hindisamay head


अ+ अ-

कविता

ओ सदानीरा !

जयकृष्ण राय तुषार


पर्वतों की
घाटियों से
जब इलाहाबाद आना।
ओ सदानीरा!
निराला के
सुनहरे गीत गाना।

आज भी
'वह तोड़ती पत्थर '
पसीने में नहाए,
सर्वहारा
के लिए अब
कौन ऐसा गीत गाए,
एक फक्कड़
कवि हुआ था
पीढ़ियों को तुम बताना।

'राम की थी
शक्ति पूजा'
पर निराला गा रहे हैं,
उस कथानक
में निराला
राम बनकर आ रहे है,
अर्चना में
कम न हो जाएँ
कमल के फूल लाना।

आज भी है
वहीं दारागंज
संगम के किनारे,
वक्त की
लहरें मिटाकर
ले गईं पदचिह्न सारे,
ओ गगन
जब गर्जना तो
वही 'बादल राग' गाना।

पूर्णिमा के
ज्वार सा मन,
वक्ष में आकाश सारा,
वह
इलाहाबाद का
उसको इलाहाबाद प्यारा,
मुश्किलों
में भी न छोड़ा
काव्य से रिश्ता निभाना।

वक्त की
पगडंडियों पर
वह अकेला चल रहा था,
आँधियों में
एक जिद्दी दीप
बनकर जल रहा था,
जानते हैं
सब बहुत पर
आज भी वह कवि अजाना।

गोद बासंती
मिली पर
पत्थरों के गीत गाया,
फूल
साहूकार, सेठों
की तरह ही नजर आया,
छंद तोड़ा
मगर उसको
छंद आता था सजाना


End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में जयकृष्ण राय तुषार की रचनाएँ